मुझ को शिकवा है मिरे भाई कि तुम जाते हुए ले गए साथ मिरी उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब इस में तो मेरी बहुत क़ीमती तस्वीरें थीं इस में बचपन था मिरा और मिरा अहद-ए-शबाब इस के बदले मुझे तुम दे गए जाते जाते अपने ग़म का ये दमकता हुआ ख़ूँ-रंग गुलाब क्या करूँ भाई ये एज़ाज़ में क्यूँ-कर पहनूँ मुझ से ले लो मिरी सब चाक क़मीसों का हिसाब आख़िरी बार है लो मान लो इक ये भी सवाल आज तक तुम से मैं लौटा नहीं मायूस-ए-जवाब आ के ले जाओ तुम अपना ये दमकता हुआ फूल मुझ को लौटा दो मिरी उम्र-ए-गुज़िश्ता की किताब