रौनक़-ए-मकतब बताओ तो ज़रा चार-हर्फ़ी लफ़्ज़ है वो कौन सा सर को उस के काट डालें हम अगर ज़ुल्म के मा'नी है देता सर-बसर तीसरा गर हर्फ़ इस का दें गिरा इस के मा'नी हों तरीक़ा क़ाएदा मानते हैं इस को सब पीर-ओ-जवाँ ज़ोर-ओ-ताक़त में है वो इक पहलवाँ देख लो तुम आप मैं ने कह दिया चार शे'रों के है सर ही में छुपा