वजूद के जो हिस्से वजूद की तलाश में खो जाते हैं उन का इंदिराज ज़िंदगी की किसी भी फ़ाइल में नहीं मिलता हाँ उन नज़्मों में जो आँसुओं की रौशनाई से लिखी गई हों वो हिस्से बस्ते हैं लेकिन फिर हमें तारीकी को अपना नशेमन बनाना पड़ता है इस राज़ से ज़िंदगी नहीं वजूद वाक़िफ़ है और हम वजूद नहीं ज़िंदगी जीते हैं