फ़ज़ा-ए-इश्क़ को मातम-गुसार छोड़ गया जहाँ में नक़्श-ए-वफ़ा यादगार छोड़ गया पयाम-ए-दीदा-ए-अफ़साना-कार छोड़ गया हिकायत-ए-ख़म-ए-गेसू-ए-यार छोड़ गया नज़र में इक ख़लिश-ए-इंतिज़ार छोड़ गया जिगर में इक तपिश-ए-दर्द-कार छोड़ गया सुना के राह-ए-मोहब्बत में नग़्मा-हा-ए-जुनूँ क़बा-ए-लाला-ओ-गुल तार-तार छोड़ गया उफ़ुक़ के पार गया ख़ंदा-ज़न बहारों पर चमन को ग़म-ज़दा-ओ-सोगवार छोड़ गया बिसात-ए-ख़ाक को दे कर बहार-ए-लाला-ओ-गुल चमन के सीने पे ज़ख़्म-ए-बहार छोड़ गया शब-ए-बहार में तारों की रौशनी के लिए मता-ए-गिर्या-ए-खूँनाबा-बार छोड़ गया पटक के जाम ज़माने की बे-सबाती पर निशान-ए-हस्ती-ए-ना-पाएदार छोड़ गया शराब-ओ-शेर की रंगीं फ़ज़ा पे लहरा कर सरूद-ए-ख़ुम-कदा-ए-नौ-बहार छोड़ गया