पहली आवाज़ ग़ुस्सैली गरजती आवाज़ देखियो मत खोलियो इस विश भरे मूज़ी का मुँह देखियो इन रास्तों में जल बुझेगी रौशनी आसमाँ के जिस्म ऊदे जिस्म से रिसने लगेगी पीप भी दूसरी आवाज़ डरते हुए सरगोशी उस की धड़कन ही से चलती है ज़माँ की नब्ज़ पहली आवाज़ ग़ुस्सैली गरजती आवाज़ और तेरी ज़बाँ चुप ज़महरीरी साँस उस की अस्र-ए-यख़बनदान ले आएगी गेती पर मत खोलियो मत खोलियो देखने को मेरा सीना है दर-अस्ल उस की कछार जिस की ढलवानों के दलदल लोथड़े हैं ख़ून के जिस पे उग आईं हैं ख़ुद-रौ झाड़ियाँ कुछ साँस की घात में आ जाएगा उस प्रेत के बाघ के सर साँप के धड़ वाला ये इफ़रीत खोब देगा दाँत गर्दन में तिरी देखियो मत खोलियो मत खोलियो इस विश भरे मूज़ी का मुँह अज़दर का मुँह अजगर का मुँह अफ़ई का मुँह इस विश भरे मूज़ी का मुँह ये रगें दूर तक फैली हुई बर्ज़ख़ तलक फैली हुई जड़ गड़ न जाएँ तुझ में भी ये सुर्ख़ साँप उस कीना-वर की दुम हैं खा सकती हैं सब दुनिया का सब्ज़ देखियो ये भूत आदम-ख़ोर है साँस लेता हर मनुश खा जाएगा मत खोलियो मत खोलियो इस विश भरे मूज़ी का मुँह इस ख़बीस आज़ारदा को मरने दे इस झड़ूस ईज़ा-रसाँ को मरने दे इस के मर जाने में इंसाँ का भला इस के मर जाने में यज़्दाँ का भला