दिल है रंजूर यहाँ है ये दस्तूर यहाँ रहरव आते हैं यहाँ लौटे जाते हैं यहाँ न कोई पास-ए-वफ़ा और न एहसास-ए-वफ़ा करते हैं जौर-ओ-जफ़ा ज़ुल्म है इन को रवा कुछ भरोसा ही नहीं कोई अपना ही नहीं अजनबी बन के रहें हर जफ़ा दिल पे सहें रोज़ बेदाद नई रोज़ उफ़्ताद नई क्या करें हाल बयाँ बेकसी का है समाँ हाल-ए-दिल कुछ न कहें रोज़ बेदाद सहें हर तरफ़ आह-ओ-बुका इक क़यामत है बपा तंग है तेरी ज़मीं कोई किस जा हो मकीं तू सहारा है ख़ुदा बस भरोसा है तिरा हाल है उन का बुरा सुन यतीमों की सदा बेवा माओं की क़सम सख़्त जानों की क़सम ये शहीदान-ए-वफ़ा जिन का घर-बार जला कभी मुख़्तार ये थे आज मजबूर हुए पाए अब जा के कहाँ दिल-ए-'नाशाद' अमाँ