ख़्वाबों की ऊँची उड़ान अपने परों पर बिठा कर मुझे दूर उफ़ुक़ तक उड़ा ले जाती है यही तो हैं वो पल जब तुम्हें पा कर मैं ख़ुद कहीं खो जाती हूँ कुछ देर जी लेने के बा'द कुछ सोच कर ख़्वाबों के इन मख़मली परों से फिसल कर मैं फिर से हक़ीक़त की पथरीली ज़मीं पर उतर आती हूँ मन तो अब भी रहता है तुम्हारे ही पास मगर मैं मैं उस दुनिया की हो जाती हूँ