जब में अपने बहुत पुराने शहरों में जाऊँगा मेरी गठरी में मुट्ठी भर मिट्टी कुछ फल फूल, सितारे होंगे कुछ गलियाँ, कुछ मूर्तियाँ कुछ रंग ब-रंग अक़ीदे कुछ नज़्ज़ारे होंगे और मिरे हमराह, मिरे अहबाब बिरहा के मारे होंगे हवा कहेगी क्यूँ आए हो ये सब चीज़ें क्यूँ लाए हो आसमान पर उड़ते हुए अंजान परिंदे छोटे छोटे झुंडों में धरती पर उतरते सब को दिखाई देंगे और पुराने शहरों वाले अपने घरों की छतों पर चढ़ के बरसों तलक दुहाई देंगे और हमारी फ़तह के नारे दूर दूर तक चारों तरफ़ सुनाई देंगे