पुराने तमाशे By Nazm << ब-फ़ैज़-ए-क़ैद-ए-आज़म तअ'ल्लुक़ >> उतरती शाम से पूछेंगे जुगनुओं का मिज़ाज जुनूँ के शहर में रातों का क्या हुआ आख़िर उफ़ुक़ पे यूँ तो सिमट आए थे नए मंज़र सुलगती आँखों में हसरत हिरास तंहाई तमाम शहर तमाशा बना था हैराँ था मगर जब आँख खिली वही पुराने तमाशे थे और मदारी नए Share on: