कुछ ख़यालों में उलझ कर रह गया कुछ उस की यादों में उस ने ज़ुल्फ़ें किया बिखराईं कि ज़िंदगी का खेल ही उलझ कर रह गया रात चुपके से चाँद आया मेरी खिड़की पे पूछा तुम्हें देखता नहीं हूँ इन दिनों कहीं तुम्हें इश्क़ तो नहीं हो गया मैं ने कहा पता नहीं क्या हो गया हाँ इतना पता है के वो मुस्कुराई थी उस दिन और मैं ग़ज़ल लिखने लग गया