सर्द कोहरे भरी रात में आओ रात भर तापें अलाव रात भर सुनाएँ हम अपनी दास्तान जिस की इबारत तुम ने लिखी थी अलाव की गर्मी में पिघलेगा मेरा ग़म आहिस्ता आहिस्ता बस तुम से इल्तिजा है कि उठना मत भर लेना मुझे अपनी बाँहों में ताकि मैं इतना रो सकूँ कि भीग जाए तुम्हारा दामन और तुम्हारी ख़ामोश आँखों से गिर पड़े दो बूँद आँसू अलाव की आँच पर