रौशनी By Nazm << इल्म लम्हात-ए-आज़ादी >> सड़क किनारे बैठ के अक्सर मैं ये सोचा करता था घटते बढ़ते टेढ़े तिरछे लाखों साए किस का पीछा करते हैं उम्र किनारे अब मैं अपना सुंदर साया ढूँड रहा हूँ Share on: