क्यों टीस सी दिल में उठती है क्यों दर्द से जी घबराता है पहले तो न था ऐसा आलम अब दिल क्यों डूबा जाता है चाहत से किसी की सीखा था ग़म सहना और आँसू पीना लेकिन अब तो हर अश्क-ए-अलम आँखों से टपक ही जाता है आदाब-ए-मोहब्बत की ख़ातिर राहत ग़म को समझे हैं तो फिर क्यों दिल से आह निकलती है क्यों चक्कर सा आ जाता है दुनिया हम से आ कर सीखे पाबंदी-ए-रस्म-ओ-राह-ए-वफ़ा रूदाद-ए-ख़िज़ाँ दोहराते हैं जब ज़िक्र-ए-बहार आ जाता है ऐ शर्म-ए-मोहब्बत जाग कि अब कुछ देर नहीं रुस्वाई में पिन्हाँ था जो दिल के पर्दे में वो दर्द ज़बाँ तक आता है ऐ काश कोई उस से जा कर ये हाल दिल-ए-बर्बाद कहे बीमार-ए-ग़म-ए-उल्फ़त तेरा है नज़्अ' में दम घबराता है इस तरह तड़पने लगता है रह रह के दिल 'नाशाद' अक्सर जैसे कि बगूला उठता है जैसे कोई तूफ़ाँ आता है