1 जब आँख खोल के देखा तो हो गया मस्तूर ये मेरा दीदा-ए-बीना ही इक हिजाब हुआ तू छुप गया मह ओ अंजुम में लाला-ओ-गुल में हर एक जल्वा-ए-रंगीं तिरा नक़ाब हुआ जब आँख बंद हुई तू ही जल्वा-आरा था 2 मिरी ज़बान खुली शरह-ए-आशिक़ी के लिए मिरा बयाँ था मुरक़्क़ा मिरी ख़जालत का हर एक हर्फ़ में था ग़ैरियत का अफ़्साना मिरी ज़बाँ ने किया ख़ूँ मिरी मोहब्बत का मिरे सुकूत में तूफ़ान-ए-इश्क़ बरपा था 3 मिरे हवास रहे तेरे वस्ल में हाइल जो बे-ख़ुदी में हुआ ग़र्क़ तू मिला मुझ को अजीब शय है मोहब्बत में ख़ुद-फ़रामोशी फ़ना हुआ तो मिली लज़्ज़त-ए-बक़ा मुझ को मिरा वजूद ही ऐ दोस्त एक पर्दा था