साहिल की शाम By Nazm << राब्ता तिरे लिए >> वो एक साहिल की शाम थी जब हमारे ए'ज़ाज़ में ख़ुशी से हबाब फोड़े थे मछलियों ने सलाम हर मौज ने किया था क़रीब-तर देख कर समुंदर ने अपना दामन हमारे जल्वों से भर लिया था वो अपनी मौजों का और तलातुम का अक्स शायद हमारी आँखों में देखता था Share on: