बनी-आदम तुम्हें कुछ याद भी है जब तुम्हें रौशन निशानी दी गई थी घमंडी तीरगी को जब गुफाओं में जला कर मर्ग़-ज़ारों को बहारों से सजाया जा रहा था तुम अपने साथ इक रौशन निशानी और गुफाओं की विरासत ले के आए थे तुम्हारे साथ थोड़े साँप भी थे जिन्हों ने अपने विर्से को गुफाओं से महकते मर्ग़-ज़ारों तक ज़मीनों से समुंदर तक हवाओं से ख़लाओं तक सँभाला है तुम्हें मालूम है क्या तुम्हारे पास तो बस एक इज़्न-ए-रौशनी है और उन के पास है इक सरमदी नुस्ख़ा गुफाओं की विरासत का तुम्हारी सब मता-ए-दीन-ओ-दानिश अक़्ल-ओ-आज़ादी का विर्सा उन के विर्से के मुक़ाबिल कुछ नहीं कुछ भी नहीं और जो तुम्हारे पास है वो भी उन्ही की दस्तरस में है तुम्हारा कुछ नहीं कुछ भी नहीं तुम्हारी सब मता-ए-बे-बहा फिर से गुफाओं की अमानत हो गई है और वो साँप उस के पहरे-दार