शरारती चाँद By Nazm << क़लम दवात सपने >> बड़ा शरारती है ये चाँद भी तरसाना शौक़ हैं इस के और लुका-छिपी इस की फ़ितरत उस पर हिमाक़त ये कि निगल जाता है कभी कभी सूरज को भी ग़नीमत है जो आसमान में ठिकाना है इस का महफ़ूज़ है वहाँ जो ज़मीं पर होता तो किस किस से मनाता अपनी ख़ैर Share on: