श्री लाल बहादुर शास्त्री वज़ीर-ए-आज़म हिन्द

ऐ बहादुर-लाल ऐ भारत सुपूत
तू था अम्न-ओ-आश्ती का पासदार

अम्न की ख़ातिर गया था ताशक़ंद
तू ने कर दी जान भी उस पर निसार

अम्न-ओ-सुल्ह-ओ-जंग में यकता था तू
भारती तहज़ीब का आईना-दार

पैकर-ए-इज्ज़-ओ-ख़ुलूस-ओ-सादगी
तू था तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का निखार

तू ने यक-जिहती अता की क़ौम को
एकता का दान भारत को दिया

सर हुआ ऊँचा हमारा हर जगह
तू ने वो सम्मान भारत को दिया

अज़्म तेरा आहनी दीवार था
सालमियत मुल्क की थी तेरी जान

शान-ए-मुल्क-ओ-क़ौम थी पेश-ए-नज़र
तुझ को अपनी जान से बढ़ कर थी आन

हो गई गुल शम्अ' दे कर रौशनी
ताक़तें अम्न-ओ-अमाँ की डट गईं

ज़िंदगी के साथ वाबस्ता है मौत
ये हक़ीक़त है मगर कितनी अजीब

हम को ये एहसास होता ही नहीं
ज़िंदगी से मौत है उतनी क़रीब

ज़ुल्मत-ए-शब से सहर की दिलकशी
यास से उम्मीद का रौशन है नाम

मौत के रोके भी रुक सकता नहीं
ज़िंदगी का कारवाँ तेज़-गाम

हिन्द है इस क़ाफ़िले का रहनुमा
कारवाँ-सालार मीर-ए-कारवाँ

अम्न-ए-आलम का अलम-बरदार है
अम्न-परवर सुल्ह-जू हिन्दोस्ताँ


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