तआ'क़ुब By Nazm << काश ईद मुफ़्लिस की >> है जो दुश्मन मेरे नाम का मेरी शोहरत का मैं ने चाहा कई बार कर दूँ उसे क़त्ल फेंक दूँ उस को दिल के निहाँ-ख़ाने से मगर हो सका न कभी वो हस्ब-ए-मामूल मेरे मुक़ाबिल ही रहता है रात दिन मुझ पे हँसता है रोज़ डसता है वो Share on: