तन्हा बैठा हूँ कमरे में माज़ी की तस्वीर लिए अब तो अनजाने क़दमों की आहट से जी डरता है मेरी चाहत उन के वा'दे दफ़्न हुए तहरीरों में झूटे हैं सारे अफ़्साने कौन किसी पर मरता है सीने की हर एक जलन से समझौता कर के मैं ने इन सारी बीती बातों को तारीकी में छोड़ दिया शीशा कह लो पत्थर कह लो कभी भी कह लूँ इस दिल को मैं ने इस अफ़्सुर्दा शय को तन्हाई से जोड़ दिया अब नाज़ुक नाज़ुक ज़ेहनों पर फ़ौलादी हमला होगा शीशों के पैकर पिघलेंगे पथरीली तन्हाई में ख़्वाबों का संसार सुनहरा तह-ख़ानों में भटकेगा अक़्ल बिचारी जा दुबकेगी सोच की गहरी खाई मैं