हम पे बेदाद वो करते हैं तो हैरत कैसी इश्क़ है जिस को वतन से उसे राहत कैसी ख़ून रग-रग में तड़पता था निकलने के लिए तेग़-ए-क़ातिल ने निकाली मिरी हसरत कैसी जो गदायान-ए-वतन हैं उन्हें आराम कहाँ ऐश मक़्सूम में उन के कहाँ इशरत कैसी जिन के दिल दर्द-ए-वतन से सदा नाशाद रहे क्या ख़बर उन को कि होती है मसर्रत कैसी ग़ैर ख़ूँ चूस रहे थे हमें मालूम न था सोने वालों पे थी छाई हुई ग़फ़लत कैसी हर-नफ़स अपना शरर-बार है दुश्मन के लिए मुश्तइ'ल दिल में हुई आतिश-ए-ग़ैरत कैसी ठान ली क़ैद ग़ुलामी से निकल जाने की दिल जो आज़ाद है सय्याद हिरासत कैसी ख़िदमत-ए-मुल्क की ख़ातिर जो हो नाज़िल हम पर ये तो आराम है राहत है मुसीबत कैसी जान देने को जो तय्यार हैं भारत के लिए उन को तलवार का डर दार की दहशत कैसी देश-भगती का जो 'साबिर' ने तराना गाया क्या कहें हम को मयस्सर हुई फ़रहत कैसी