एक इक हर्फ़ सजा कर तुझे तहरीर किया ख़ून की नदियाँ बहा कर तुझे तहरीर किया दर्द में उम्र बिता कर तुझे तहरीर किया अब तो कहता है मिरा कोई भी किरदार नहीं मेरा किया है, मैं उन्ही रास्तों में रहता हूँ मुझ को ये हुक्म है जा, जा के पत्थरों को तराश मैं अज़ल से इसी इक काम में लाया गया हूँ मैं कभी पीर, पयम्बर, कभी शाएर की सिफ़त तेरे बे-फ़ैज़ ज़माने में उतारा गया हूँ मैं तो बहता हुआ दरिया हूँ, समुंदर भी हूँ मैं तो जुगनू भी हूँ, तितली भी हूँ, ख़ुशबू भी हूँ मैं तो जिस रंग में भी आया हूँ, छाया गया हूँ तू अगर मुझ को न समझा तो ऐ मेरे हमदम मैं किसी रोज़ तिरे हाथ से खो जाऊँगा और तू वक़्त के तपते हुए सहराओं में हाथ मलता हुआ रोता हुआ रह जाएगा