वो उजले मौसमों के लोग उजली चाँदनी का रूप ले के दिल के आँगनों में फिर से इक नई उम्मीद देने आ गए उन्हीं के हाथ अपने दिल की काएनात इक नया वजूद फिर से पा गई वो लोग उजले मौसमों के लोग रहनुमा-ओ-रह-नवर्द ज़र्द ज़र्द रात को ज़ात की किताब को वरक़ वरक़ तमाम लिखने आ गए इलाही ये किताब जिस के हर वरक़ पे एक ख़्वाब यूँ चमक रहा है जैसे आफ़्ताब तू करे क़ुबूल तो हो कामयाब और हम उजले मौसमों के साथ उजले दिन का इंतिज़ार कर सकें इक नई किताब लिख सकें