अम्मी की मोहब्बत मिलती है अब्बू की भी शफ़क़त मिलती है ऐ माज़ी तिरे इक दामन से क्या क्या मुझे दौलत मिलती है बचपन का ज़माना तुझ में है हर लम्हा सुहाना तुझ में है जो ख़्वाबों को दस्तक देता था वो अहद पुराना तुझ में है नाकामी न ये ना-शादी थी बे-फ़िक्री थी आज़ादी थी शहज़ादा था मैं अरमानों का उम्मीद मिरी शहज़ादी थी हर कीना हसद से दूर था मैं हर आदत-ए-बद से दूर था मैं मासूम तबीअत थी मेरी शैतान की ज़द से दूर था मैं ये चाँद खिलौना था मेरा इक सपना सुनहरा था मेरा मुट्ठी में थी दुनिया बंद मिरी ये सारा ज़माना था मेरा बचपन का ज़माना बीत गया वो मीत गए वो गीत गया 'शहज़ाद' अब अक्सर सोचता हूँ क्या हार गया क्या जीत गया