ये ज़मीं ये आसमाँ चाँद सूरज कहकशाँ ये समुंदर नद्दियाँ हम को विर्से में मिले ये वतन का गुलिस्ताँ ये नगर ये बस्तियाँ कितना अच्छा ये जहाँ हम को विर्से में मिले ऊँचे ऊँचे ये पहाड़ ये घने जंगल ये झाड़ जेठ फागुन और असाढ़ हम को विर्से में मिले ये चमन ये मर्ग़-ज़ार ये पहाड़ और आबशार फूल महकाती बहार हम को विर्से में मिले