इलाही ख़ैर वो हर दम नई बेदाद करते हैं हमीं तोहमत लगाते हैं जो हम फ़रियाद करते हैं कभी आज़ाद करते हैं कभी बेदाद करते हैं मगर उस पर भी हम सौ जी से उन को याद करते हैं असीरान-ए-क़फ़स से काश ये सय्याद कह देता रहो आज़ाद हो कर हम तुम्हें आज़ाद करते हैं रहा करता है अहल-ए-ग़म को क्या क्या इंतिज़ार इस का कि देखें वो दिल-ए-नाशाद को कब शाद करते हैं ये कह कह कर बसर की उम्र हम ने क़ैद-ए-उल्फ़त में वो अब आज़ाद करते हैं वो अब आज़ाद करते हैं सितम ऐसा नहीं देखा जफ़ा ऐसी नहीं देखी वो चुप रहने को कहते हैं जो हम फ़रियाद करते हैं ये बात अच्छी नहीं होती ये बात अच्छी नहीं होती हमें बेकस समझ कर आप क्यूँ बर्बाद करते हैं कोई बिस्मिल बनाता है जो मक़्तल में हमें 'बिस्मिल' तो हम डर कर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं