जो दिलेर थी कभी जब पैदा हुई थी तो रो रो कर पैर पटक कर अपने अस्तित्व को दर्शाने की कोशिश करने लगी पर नज़र पड़ते ही अपनी माँ पर माँ की बेचारगी ने उसे सहमना सिखाया अपनी अहमियत दिखाने की जुरअत हुई तुम्हें कैसे ज़माने की नज़रों में ये नज़र आया और बस तभी से पय्याँ पय्याँ चलने से स्कूल से कॉलेज तक कॉलेज से मंडप तक बस सहमी हुई है कभी जो दिलेर होने की कोशिश करती है बे-शर्म कहलाई जाती है लोगों को चालाक न नज़र आए इस लिए झट फिर सहम जाती है मानो सहमना तो उस की निय्यत है उस लड़की से मेरा एक अजीब सा रिश्ता है उस में मुझे अपना बचपन दिखता है