ऐ अजल-रसीदा दिल तू मुझे कहाँ लाया क्या यही जगह है वो कल जहाँ हसीं चेहरे शोख़ दिलरुबा नग़्मे साज़ पर उमंगों के झूम झूम जाते थे दूर उस पहाड़ी के ख़ुशनुमा से टीले पर बाग़ एक फैला था झील का तरन्नुम था हुस्न था जवानी थी कैफ़ था फ़ज़ाओं में शोख़ियाँ हवाओं में कल यहाँ की हर इक शय थी जवान और ख़ुश-कुन था बहार का आलम आज उन की यादों की राख सिर्फ़ उड़ती है मिट गए हसीं चेहरे इस ज़मीं के ज़र्रों में खो गई फ़ज़ाओं में फूल की मधुर ख़ुशबू वक़्त की ये करवट भी किस क़दर अनोखी है वक़्त कितना जाबिर है वक़्त कितना ज़ालिम है