दिल-ए-हज़ीं में अभी याद-ए-यार बाक़ी है ख़िज़ाँ-रसीदा चमन में बहार बाक़ी है निशान-ए-हस्ती-ए-ना-पाएदार बाक़ी है किसी का नाम किसी का मज़ार बाक़ी है हज़ार करवटें बदलीं ज़माने ने अब तक मगर अभी वही लैल-ओ-नहार बाक़ी है बहार फिरती है आँखों में बज़्म-ए-साक़ी की सुरूर-ए-रफ़्ता का अब तक ख़ुमार बाक़ी है शकेब-ओ-सब्र मोहब्बत में खो चुका जब से जिगर में ताब न दिल में क़रार बाक़ी है रहा न हश्र में रहमत से कोई भी महरूम मिरे गुनाहों का फिर भी शुमार बाक़ी है जो खिंच के नज़्अ' में दम आ गया है अश्कों में दम-ए-विदाअ' तिरा इंतिज़ार बाक़ी है सुकून-ए-मर्ग न आ तू अभी ख़ुदा के लिए कि दिल में ताब-ए-ग़म-ए-रोज़गार बाक़ी है मिला के ख़ाक में 'मेहदी' को क्या मिलेगा तुझे तिरी जफ़ा की जो इक यादगार बाक़ी है