सूरज छुपा तो रात के पर फैलते गए फिर यूँ हुआ कि तेज़ हवाओं के दोष से आँधी उतर के गीले दरख़्तों पे छा गई कुछ शाख़ें टूट कर जो दरख़्तों से आ पड़ीं इक साथ फ़ाख़ताएँ कई चीख़ कर गिरीं कुछ घोंसलों को तेज़ हवाएँ निगल गईं दिन-भर निकल रहा है मगर ऊँघता हुआ क़ातिल सियह-रुख़ों का लहू सूँघता हुआ