मलफ़ूज़ात-ए-हाजी गुल बाबा बेक्ताशी

Shayari By

रात-भर मेरे दरीचे के नीचे आज़रबायजानी तुर्की में क़व्वाली हुआ की। सुब्ह मुँह-अँधेरे आवाज़ें मद्धम पढ़ें और कोह-ए-क़ाफ़ के धुँदलके में गईं।
जब सूरज निकला मैंने सराय के बाहर आकर आसमान पर रुख़ को तलाश किया। लेकिन रुख़ के बजाए एक फ़ाख़्ता अरारत की सिम्त से उड़ती हुई आई। फ़ाख़्ता की चोंच में एक अ’दद ख़त था। सेहन में आकर वो उस समावार पर बैठ गई जो अंगूरों की बेल के नीचे एक कोने में तिपाई पर रखा था। फ़ाख़्ता ने पुतलियाँ घुमा कर चारों तरफ़ देखा और मुझ पर उसकी नज़र पड़ी। वो फ़ुदक कर समावार से उतरी, लिफ़ाफ़ा मेरे नज़दीक गिराया और कोह-ए-अरारत की तरफ़ फिर से उड़ गई।

सराय के मालिक ने बग़ैर दूध की चाय फ़िंजान में उंडेल कर मुझे दी और बोला, “हानम। शायद रुख़ ने आपको इत्तिला भेजी है कि उसने अपनी फ़्लाईट पोस्टपोन की।”
“हो सकता है”, मैंने जवाब दिया। [...]

प्रेम कहानी

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मैं आज उस वाक़िए’ का हाल सुनाता हूँ। तुम शायद ये कहो कि मैं अपने आपको धोका दे रहा हूँ। लेकिन तुमने कभी इस बात का तो मुशाहिदा किया होगा कि वो शख़्स जो ज़िंदगी से मुहब्बत करता है कभी-कभी ऐसी हरकतें भी कर बैठता है जिनसे सर्द-मेहरी और ज़िंदगी से नफ़रत टपकती है।
इसकी वज्ह ये है कि उसको ज़िंदगी ने कुछ ऐसी ईज़ा पहुँचाई है कि वो ज़िंदगी की ख़्वाहिश को घोंट कर उससे दूर भागने लगता है और अपने गोशा-ए-आफ़ियत में उसकी राहों को भूल जाता है। लेकिन उसकी मुहब्बत कभी मर नहीं सकती और उसकी आग ख़्वाबों के खंडरात की तह में अंदर ही सुलगती रहती है।

चूँकि ख़्वाबों की दुनिया में रहने की वज्ह से वो ज़िंदगी से बे-बहरा हो जाता है, इसलिए अपनी मंज़िल-ए-मक़्सूद के क़रीब पहुँच कर वो ख़ुशी और ग़ुरूर से इस क़दर भर जाता है कि अपनी सब तदबीरों को ख़ुद ही उल्टा कर देता है और इस ख़याल में कि अब तो मा-हसल मिल गया वो अपनी महबूबा को बजाए ख़ुश करने के मुतनफ़्फ़िर कर देता है। बस यही मेरे साथ भी हुआ।
अब अपनी ज़िंदगी के हालात दोहराने से किया हासिल? ताहम तुम्हें मेरी ज़िंदगी का वो ला-जवाब और सोगवार ज़माना तो याद होगा जब मुझे उससे मुहब्बत थी। मुझे तुम्हारी मुहब्बत भरी तसल्ली-ओ-तशफ़्फ़ी ख़ूब याद है, लेकिन इसके बा-वजूद भी मैं अपने किए को न मिटा सका। मैंने मुहब्बत का ख़ून मुहब्बत से कर डाला और हालाँकि मैं उस वक़्त अपने को क़ातिल न समझता था मगर अब मुझे अपने जुर्म का यक़ीन है। [...]

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