जाएज़ इस्तेमाल

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दस राउंड चलाने और तीन आदमियों को ज़ख़्मी करने के बाद पठान भी आख़िर सुर्ख़-रु हो ही गया।
एक अफ़रा तफ़री मची थी। लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे। छीना झपटी हो रही थी। मार धाड़ भी जारी थी।

पठान अपनी बंदूक़ लिए घुसा और तक़रीबन एक घंटा कुश्ती लड़ने के बाद थर्मस बोतल पर हाथ साफ़ करने में कामयाब होगया।
पुलिस पहुंची तो सब भागे... पठान भी। [...]

बे-ख़बरी का फ़ायदा

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लबलबी दबी... पिस्तौल से झुँझला कर गोली बाहर निकली।
खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा होगया।

लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी... दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली।
सड़क पर माशकी की मशक फटी। औंधे मुँह गिरा और उसका लहू मशक के पानी में हल हो कर बहने लगा। [...]

इस्लाह

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“कौन हो तुम?”
“तुम कौन हो?”

“हरहर महादेव... हरहर महादेव?”
“हरहर महादेव?” [...]

रूपा

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नीम सार से आगे क्रिया के अंधेरे जंगल के निकलते ही गोमती मग़रूर हसीनाओं की तरह दामन उठाकर चलती है... दूर तक फैले हुए रेतीले चमचमाते दामन में नबी नगर घड़ा है जैसे किसी बद-शौक़ रईस-ज़ादे ने अपने बुर्राक़ कपड़ों पर चिकनी मिट्टी से भरी हुई दवात उंडेल ली हो। मिट्टी के टूटे-फूटे मकान बचे खुचे छप्परों की टोपियाँ पहने बड़े फूहड़पने से बैठे हैं।
यह गाँव अवध के देहातों की ज़िद है। इसके गिर्द न तो बाँसी की वो घनी बाढ़ है जिसमें फँस कर सांप मर जाते हैं, न छतनार पीपलों और झलदारे बरगदों के वो ख़ामोश शामियाने हैं जिनके कुंजों में गालों के गुलाब और होंटों के शहतूत उगते हैं, न वो चौड़े चकले पनघट हैं जहाँ कुकरे बजाती पनिहारिनों के पैरों के बिछुवे अपने घुंघरुओं के डंक उठाए राहगीरों की राह तका करते हैं मगर दूर दूर तक यह गाँव जाना जाता है। यहाँ की भैंसें मशहूर हैं। यहाँ के गद्दी मशहूर हैं। यहाँ का रजब मशहूर है। सारंग आबाद राज का हाथी... वहाँ बड़हल के पेड़ों के झंडे के नीचे तक आकर रुक जाता है... कि हाथी के पैरों बराबर ऊँची दीवारों के पीछे कुलेलें करती हुई ग़रीब रानियों के खुले ढ़ले जिस्मों पर निगाहों की गर्द न पड़ जाये।

(2)
दस-बारह बरस का रजब अपने बाप के साथ सारंग आबाद राज की भैंसें लगाए गढ़ी जाया करता था। अपनी भूरी भैंसें लगाकर उसने अंगड़ाई ली तो सलीक़े के श्लोके का बटन चट से टूट कर गिर पड़ा। बटन उठाकर निगाह उठाई तो बौखला गया। सरकार खड़े हुए घूर रहे थे उसने जल्दी से सलाम कर लिया। [...]

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