जाजी का अस्ली नाम तो किसी को मालूम नहीं, अलबत्ता सब उसे पेटू मियां कहते थे। पेटू भी ऐसे कि सारा बावरीचीख़ाना चट कर के भी शोर मचाते थे। ‘‘हाय मैं कई दिनों से भूका हूँ और कमज़ोर हो रहा हूँ, कोई भी मुझ ग़रीब पर तरस नहीं खाता।’’ और अम्मी झट से उस के आगे मुख़्तलिफ़ चीज़ें रख देतीं मगर वो ज़िद कर के कहते। ‘‘मैं तो चीनी खाऊंगा खा’’ खा के पेटू मियां तो फूल कर कुप्पा हो चुके थे। उनकी डेढ़ मन वज़नी तोंद तो चीनी की बोरी मालूम होती थी। फिर लिबास में नैकर पहन लेते और सर पर पठानों जैसी टोपी। अक्सर देखा गया कि उनकी जेब में चोरी के बिस्कुट होते और वो ठिठुरती सर्दी में कोट पहने बड़े मज़े से कुलफ़ी, खोए, मलाई, वाली खा रहे होते। क़रीब से आम पापड़ बेचने वाला गुज़र रहा होता, तो उसे भी आवाज़ देकर ठहरा लेते और फिर सब कुछ खा पी के भी बावर्चीख़ाने में आ धमकते और कहते ‘‘हाय अम्मी, बड़ी सख़्त भूक लगी हुई है। बस चीनी का एक पराठा पक्का दीजिए ना!’’ मज़े की बात तो ये थी कि चीनी का पराठा भी चीनी के साथ खाते और साथ साथ मीठा शर्बत पीते जाते। पेटू मियां की उम्र 13 साल थी। वो आठवीं जमात में पढ़ते थे। घर से स्कूल जाते और हफ़्ते में दो एक-बार स्कूल जाने की बजाय रास्ते ही में नौ दो ग्यारह हो जाते। बल्लू और काका को साथ लेते और सीधे बाग़ में, ग़ुलेल से चिड़ियों का शिकार करने पहुंच जाते। बेचारी चिड़ियों को भून भून कर खाने में उन्हें ख़ुदा जाने क्या लुत्फ़ आता था। पेटू मियां को अपने नाम से बहुत चिड़ थी। जब कोई उन्हें पेटू मियां कह कर बुलाता, उस से नाराज़ हो जाते और बाज़-औक़ात लड़ने झगड़ने और मरने मारने पर उतर आते। फिर ख़ुद ही रोते हुए अम्मी के पास चले आते और कहते ‘‘मैं तो सिर्फ़ आठ दस रोटियाँ, बिस्कुट के तीन चार डिब्बे, टॉफ़ियों का एक अदद पैकेट और ज़्यादा से ज़्यादा सालन की आधी देगची खाता हूँ। इस के बावजूद सब मुझे पेटू कह कर छेड़ते हैं।’’ अम्मी, पेटू मियां का प्यार से मुँह चूमने लगतीं और कहतीं। ‘‘बड़े गंदे हैं वो लोग, जो मेरे लाल को पेटू कह कर छेड़ते हैं। वो तो मेरे जाजी को नज़र लगा देंगे।’’ अम्मी के इस प्यार पर पेटू मियां मासूम नज़रों से सवाल करते। ‘‘बड़ी भूक लगी हुई, अम्मी, बस चीनी का एक पराठा पका दीजिए।’’ और इस तरह दिन में उन्हें कई बार चीनी का पराठा खाने को मिल जाता। अब्बा जान उन्हें मना करते कि चीनी ज़्यादा ना खाया करो, बीमार हो जाओगे। मगर पेटू मियां सुनी अन-सुनी कर देते और जवाब में कहते, ‘‘चीन के लोग भी तो चीनी खाते हैं, वो क्यों बीमार नहीं होते?’’ ज़्यादा खाने की वजह से पेटू मियां को क्लास में बैठे-बैठे नींद आजाती। वो ख़र्राटे लेने लगते तो सारे लड़के हँसने लगते। मास्टर जी की भी हंसी निकल आती और पेटू मियां घर आकर अम्मी, अब्बू से कहते कि स्कूल के लड़के उनक़ा मज़ाक़ उड़ाते हैं। अम्मी ने एक दिन कहा कि तुम दिन-ब-दिन मोटे होते जा रहे हो, खेला कूदा करो, ठीक हो जाओगे। पेटू मियां की समझ में ये बात तो आ गई, मगर उन्होंने बार-बार खाने की आदत को तर्क ना किया और वो पेटू के पेटू रहे।
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