सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था

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फिर शाम का अंधेरा छा गया। किसी दूर दराज़ की सरज़मीन से, न जाने कहाँ से मेरे कानों में एक दबी हुई सी, छुपी हुई आवाज़ आहिस्ता-आहिस्ता गा रही थी,
चमक तारे से मांगी चांद से दाग़-ए-जिगर मांगा

उड़ाई तीरगी थोड़ी सी शब की ज़ुल्फ़-ए-बर्हम से
तड़प बिजली से पाई, हूर से पाकीज़गी पाई [...]

बेगू

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तसल्लियां और दिलासे बेकार हैं। लोहे और सोने के ये मुरक्कब में छटांकों फांक चुका हूँ। कौन सी दवा है जो मेरे हलक़ से नहीं उतारी गई। मैं आपके अख़लाक़ का ममनून हूँ मगर डाक्टर साहब मेरी मौत यक़ीनी है। आप कैसे कह रहे हैं कि मैं दिक़ का मरीज़ नहीं। क्या मैं हर रोज़ ख़ून नहीं थूकता?
आप यही कहेंगे कि मेरे गले और दाँतों की ख़राबी का नतीजा है मगर मैं सब कुछ जानता हूँ। मेरे दोनों फेफड़े ख़ाना-ए-ज़ंबूर की तरह मुशब्बक हो चुके हैं। आपके इंजेक्शन मुझे दुबारा ज़िंदगी नहीं बख़्श सकते। देखिए, मैं इस वक़्त आपसे बातें कर रहा हूँ। मगर सीने पर एक वज़नी इंजन दौड़ता हुआ महसूस कर रहा हूँ। मालूम होता है कि मैं एक तारीक गढ़े में उतर रहा हूँ... क़ब्र भी तो एक तारीक गढ़ा है।

आप मेरी तरफ़ इस तरह न देखिए डाक्टर साहब, मुझे इस चीज़ का कामिल एहसास है कि आप अपने हस्पताल में किसी मरीज़ का मरना पसंद नहीं करते मगर जो चीज़ अटल है वो होके रहेगी। आप ऐसा कीजिए कि मुझे यहां से रुख़सत कर दीजिए। मेरी टांगों में तीन-चार मील चलने की क़ुव्वत अभी बाक़ी है। किसी क़रीब के गांव में चला जाऊंगा और... मगर मैं तो रो रहा हूँ। नहीं नहीं। डाक्टर साहब यक़ीन कीजिए। मैं मौत से ख़ाइफ़ नहीं। ये मेरे जज़्बात हैं, जो आँसूओं की शक्ल में बाहर निकल रहे हैं।
आह! आप क्या जानें। इस मदक़ूक़ के सीने से क्या कुछ बाहर निकलने को मचल रहा है। मैं अपने अंजाम से बाख़बर हूँ। आज से पाँच बरस पहले भी मैं इस वहशतनाक अंजाम से बाख़बर था। जानता था और अच्छी तरह जानता था कि कुछ अर्सा के बाद मेरी ज़िंदगी की दौड़ ख़त्म हो जाएगी। [...]

मोना लिसा

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परियों की सर-ज़मीन को एक रास्ता जाता है शाह बलूत और सनोबर के जंगलों में से गुज़रता हुआ जहाँ रुपहली नद्दियों के किनारे चेरी और बादाम के सायों में ख़ूबसूरत चरवाहे छोटी-छोटी बाँसुरियों पर ख़्वाबों के नग़्मे अलापते हैं। ये सुनहरे चाँद की वादी है। never never।and के मग़रूर और ख़ूबसूरत शहज़ादे। पीटर पैन का मुल्क जहाँ हमेशा सारी बातें अच्छी-अच्छी हुआ करती हैं। आइसक्रीम की बर्फ़ पड़ती है। चॉकलेट और प्लम केक के मकानों में रहा जाता है। मोटरें पैट्रोल के बजाए चाय से चलती हैं। बग़ैर पढ़े डिग्रियाँ मिल जाती हैं।
और कहानियों के इस मुल्क को जाने वाले रास्ते के किनारे-किनारे बहुत से साइन पोस्ट खड़े हैं जिन पर लिखा है, “सिर्फ़ मोटरों के लिए”

“ये आम रास्ता नहीं”, और शाम के अँधरे में ज़न्नाटे से आती हुई कारों की तेज़ रौशनी में नर्गिस के फूलों की छोटी सी पहाड़ी में से झाँकते हुए ये अल्फ़ाज़ जगमगा उठते हैं, “प्लीज़ आहिस्ता चलाइए... शुक्रिया!”
और बहार की शगुफ़्ता और रौशन दोपहरों में सुनहरे बालों वाली कर्ली लौक्स, सिंड्रेला और स्नो-वाईट छोटी-छोटी फूलों की टोकरियाँ लेकर इस रास्ते पर चेरी के शगूफ़े और सितारा-ए-सहरी की कलियाँ जमा’ करने आया करती थीं। [...]

सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था

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फिर शाम का अंधेरा छा गया। किसी दूर दराज़ की सरज़मीन से, न जाने कहाँ से मेरे कानों में एक दबी हुई सी, छुपी हुई आवाज़ आहिस्ता-आहिस्ता गा रही थी,
चमक तारे से मांगी चांद से दाग़-ए-जिगर मांगा

उड़ाई तीरगी थोड़ी सी शब की ज़ुल्फ़-ए-बर्हम से
तड़प बिजली से पाई, हूर से पाकीज़गी पाई [...]

इक्का

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दस बजे हैं। लेडी हिम्मत क़दर ने अपनी मोटी सी नाज़ुक कलाई पर नज़र डालते हुए जमाही ली। नवाब हिम्मत क़दर ने अपनी ख़तरनाक मूंछों से दाँत चमका कर कहा। ग्यारह, साढे़ गया बजे तक तो हम ज़रूर फ़ो... होनच... बिग...
मोटर को एक झटका लगा और तेवरी पर बल डाल कर नवाब साहिब ने एक छोकरे के साथ मोड़ का पाए गढ़े से निकाला और अजीब लहजा में कहा। लाहौल वला क़ोৃ कच्ची सड़क...

गर्द-ओ-ग़ुबार का एक तूफान-ए-अज़ीम पाए के नीचे से उठा कि जो हमने अपने मोटर के पीछे छोड़ा। कितने मेल और होंगे ? लेडी हिम्मत क़दर ने मुस्कुराते हुए पूछा।
मैंने कुछ संजीदगी से जवाब दिया। अभी अट्ठाईस मेल और हैं। नवाब साहिब ने मोटर की रफ़्तार और तेज़ कर दी। [...]

आधे चेहरे

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मैं समझता हूँ कि आज की दुनिया में सबसे अहम मसला इमोशनल स्ट्रैस और स्ट्रेन का है। असलम ने कहा, अगर हम इमोशनल स्ट्रैस को कंट्रोल करने में कामयाब हो जाएं तो बहुत सी कॉम्प्लिकेशन्ज़ से नजात मिल सकती है।
आपका मतलब है ट्रंकुलाइज़र क़िस्म की चीज़। रशीद ने पूछा।

नहीं नहीं। असलम ने कहा, ट्रंकुलाइज़र ने मज़ीद पेचीदगियां पैदा कर रखी हैं। एलोपैथी ने जो मर्ज़ को दबा देने की रस्म पैदा की है, उससे अमराज़ में इज़ाफ़ा हो गया है और सिर्फ़ इज़ाफ़ा ही नहीं इस सपरीशन की वजह से मर्ज़ ने किमोफ़लाज करना सीख लिया है। लिहाज़ा मर्ज़ भेस बदल बदल कर ख़ुद को ज़ाहिर करता है। इसी वजह से उसमें इसरार का उंसुर बढ़ता जा रहा है। तशख़ीस करना मुश्किल हो गया है। क्यों ताऊस, तुम्हारा क्या ख़याल है? असलम ने पूछा।
मैं तो सिर्फ़ एक बात जानता हूँ। ताऊस बोला, हमारा तरीक़-ए-इलाज यानी होम्योपैथी यक़ीनन रुहानी तरीक़ा-ए-इलाज है। हमारी अदवियात माद्दे की नहीं बल्कि अनर्जी की सूरत में होती हैं। जितनी दवा कम हो, उसमें उतनी ही ताक़त ज़्यादा होती है। यही इस बात का मुँह बोलता सबूत है। [...]

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