अबे ओ राम लाल, ठहर तो सही। हम भी आ रहे हैं। दो आदमी हाथों में डंडे लिए नशे में चूर झूमते आ रहे थे, राम लाल जो आगे-आगे चल रहा था, डंडा सँभालता हुआ उनकी तरफ़ मुड़ा, जो अब मस्ती से गले लग रहे थे। हवा बंद थी और गर्मी से दम घुटा जाता था। वो सब ताड़ी ख़ाना से लौट रहे थे।
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