कश्मकश

Shayari By

सालिक साहब और मौलाना ताजवर, दोनों के दरमियान कशीदगी रहती थी। एक मर्तबा ‎सालिक के एक दोस्त ने कहा कि आपके दरमियान ये “कश्मकश” ठीक नहीं, सुलह हो जानी ‎चाहिए। सालिक बोले,
‎“हुज़ूर, हमारी तरफ़ से तो “कश” है “मकश” तो ताजवर साहब करते हैं। आपकी नसीहत तो ‎उनको होनी चाहिए।”


कश्मकश

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सालिक साहब और मौलाना ताजवर, दोनों के दरमियान कशीदगी रहती थी। एक मर्तबा ‎सालिक के एक दोस्त ने कहा कि आपके दरमियान ये “कश्मकश” ठीक नहीं, सुलह हो जानी ‎चाहिए। सालिक बोले,
‎“हुज़ूर, हमारी तरफ़ से तो “कश” है “मकश” तो ताजवर साहब करते हैं। आपकी नसीहत तो ‎उनको होनी चाहिए।”


एक आँख का वायसराय

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मौलाना अब्दुल मजीद सालिक हश्शाश-ओ-बश्शाश रहने के आ’दी थे और जब तक दफ़्तर में ‎रहते, दफ़्तर क़हक़हा-ज़ार रहता। उनकी तहरीरों में भी उनकी तबीयत की तरह शगुफ़्तगी ‎होती थी। जब लार्ड वेवल हिंदुस्तान के वायसराय मुक़र्रर हुए तो सालिक ने अनोखे ढंग से ‎बताया कि वो एक आँख से महरूम हैं। चुनांचे मौलाना सालिक ने इन्क़िलाब के मज़ाहिया ‎कॉलम “अफ़कार-ओ-हवादिस” में लिखा,
‎“लार्ड वेवल के वायसराय मुक़र्रर होने का ये वा’दा है कि वो सबको एक आँख से देखेंगे।”‎


एक आँख का वायसराय

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मौलाना अब्दुल मजीद सालिक हश्शाश-ओ-बश्शाश रहने के आ’दी थे और जब तक दफ़्तर में ‎रहते, दफ़्तर क़हक़हा-ज़ार रहता। उनकी तहरीरों में भी उनकी तबीयत की तरह शगुफ़्तगी ‎होती थी। जब लार्ड वेवल हिंदुस्तान के वायसराय मुक़र्रर हुए तो सालिक ने अनोखे ढंग से ‎बताया कि वो एक आँख से महरूम हैं। चुनांचे मौलाना सालिक ने इन्क़िलाब के मज़ाहिया ‎कॉलम “अफ़कार-ओ-हवादिस” में लिखा,
‎“लार्ड वेवल के वायसराय मुक़र्रर होने का ये वा’दा है कि वो सबको एक आँख से देखेंगे।”‎


दिल जले का तब्सिरा

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अब्दुल मजीद सालिक को एक-बार किसी दिल जले ने लिखा,
‎“आप अपने रोज़नामे में गुमराहकुन ख़बरें छापते हैं और आ’म लोगों को बेवक़ूफ़ बनाकर ‎अपना उल्लू सीधा करते हैं।” ‎

सालिक साहब ने निहायत हलीमी से उसे जवाब देते हुए लिखा,
‎“हम तो जो कुछ लिखते हैं मुल्क-ओ-क़ौम की बहबूदी के जज़्बे के ज़ेर-ए-असर लिखते हैं और ‎अगर हज़ारों क़ारईन में आप जैसा एक आदमी भी हमारे किसी मज़मून से मुतास्सिर हो कर ‎नेक राह इख़्तियार करले, तो हम समझेंगे हमारा उल्लू सीधा हो गया।” [...]

दिल जले का तब्सिरा

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अब्दुल मजीद सालिक को एक-बार किसी दिल जले ने लिखा,
‎“आप अपने रोज़नामे में गुमराहकुन ख़बरें छापते हैं और आ’म लोगों को बेवक़ूफ़ बनाकर ‎अपना उल्लू सीधा करते हैं।” ‎

सालिक साहब ने निहायत हलीमी से उसे जवाब देते हुए लिखा,
‎“हम तो जो कुछ लिखते हैं मुल्क-ओ-क़ौम की बहबूदी के जज़्बे के ज़ेर-ए-असर लिखते हैं और ‎अगर हज़ारों क़ारईन में आप जैसा एक आदमी भी हमारे किसी मज़मून से मुतास्सिर हो कर ‎नेक राह इख़्तियार करले, तो हम समझेंगे हमारा उल्लू सीधा हो गया।” [...]

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