सभी हिंदी शायरी

वो मिला तो हुस्न के वो सारे पैकर मिल गए

वो मिला तो हुस्न के वो सारे पैकर मिल गए ...

abdullah-minhaj-khan

तुम्हारा ऐसे घर जाना बहुत तकलीफ़ देता है

तुम्हारा ऐसे घर जाना बहुत तकलीफ़ देता है ...

abdullah-minhaj-khan

मोहब्बत मेरे जीने का सहारा हो तो अच्छा है

मोहब्बत मेरे जीने का सहारा हो तो अच्छा है ...

abdullah-minhaj-khan

लगता है जैसे प्यार में शिद्दत बदल गई

लगता है जैसे प्यार में शिद्दत बदल गई ...

abdullah-minhaj-khan

किस को है वक़्त कि पूछे वो हक़ीक़त तेरी

किस को है वक़्त कि पूछे वो हक़ीक़त तेरी ...

abdullah-minhaj-khan

ख़ुद-ग़र्ज़ हो के अपनों के ग़म-ख़्वार ही रहो

ख़ुद-ग़र्ज़ हो के अपनों के ग़म-ख़्वार ही रहो ...

abdullah-minhaj-khan

जो एक शख़्स था मिस्ल-ए-बहार मेरे लिए

जो एक शख़्स था मिस्ल-ए-बहार मेरे लिए ...

abdullah-minhaj-khan

जिस से भी हम ने दिल-लगी की है

जिस से भी हम ने दिल-लगी की है ...

abdullah-minhaj-khan

हर मोड़ पे जो बनते हैं हुशियार बार-बार

हर मोड़ पे जो बनते हैं हुशियार बार-बार ...

abdullah-minhaj-khan

बना के ख़ुद को मोहब्बत में बा-वफ़ा रखिए

बना के ख़ुद को मोहब्बत में बा-वफ़ा रखिए ...

abdullah-minhaj-khan

बर्फ़बारी से पहले

“आज रात तो यक़ीनन बर्फ़ पड़ेगी”, साहिब-ए-ख़ाना ने कहा। सब आतिश-दान के और क़रीब हो के बैठ गए। आतिश-दान पर रखी हुई घड़ी अपनी मुतवाज़िन यकसानियत के साथ टक-टक ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

जान अपनी चली जाए है जाए से किसू के

जान अपनी चली जाए है जाए से किसू के ...

abdul-rahman-ehsan-dehlvi

मम्मद भाई

फ़ारस रोड से आप उस तरफ़ गली में चले जाइए जो सफ़ेद गली कहलाती है तो उसके आख़िरी सिरे पर आपको चंद होटल मिलेंगे। यूँ तो बंबई में क़दम क़दम पर होटल और रेस्तोर...

सआदत-हसन-मंटो

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा ...

abdul-mannan-tarzi

آسماں بھی ہے ستم ایجاد کیا!

جولائی ۴۴ء کی ایک ابر آلود سہ پہر جب وادیوں اور مکانوں کی سرخ چھتوں پر گہرا نیلا کہرا چھایا ہوا تھا اور پہاڑ کی چوٹیوں پر تیرتے ہوئے بادل برآمدوں کے...

قرۃالعین-حیدر

स्वराज के लिए

मुझे सन् याद नहीं रहा लेकिन वही दिन थे। जब अमृतसर में हर तरफ़ “इन्क़लाब ज़िंदाबाद” के नारे गूंजते थे। उन नारों में, मुझे अच्छी तरह याद है, एक अ’जीब क़िस...

सआदत-हसन-मंटो

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

डालन वाला

हर तीसरे दिन, सह-पहर के वक़्त एक बेहद दुबला पुतला बूढ़ा, घुसे और जगह-जगह से चमकते हुए सियाह कोट पतलून में मलबूस, सियाह गोल टोपी ओढ़े, पतली कमानी वाली छो...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

अंगूठी की मुसीबत

(1) ...

मिर्ज़ा-अज़ीम-बेग़-चुग़ताई

मेरा नाम राधा है

ये उस ज़माने का ज़िक्र है जब इस जंग का नाम-ओ-निशान भी नहीं था। ग़ालिबन आठ नौ बरस पहले की बात है जब ज़िंदगी में हंगामे बड़े सलीक़े से आते थे। आज कल की तरह न...

सआदत-हसन-मंटो
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