देखने को फूल में मशग़ूल है ...
दम-ब-दम मेरा तरफ़-दार हुआ करता था ...
बस फ़िराक़-ए-यार में जारी सुख़न-आराइयाँ ...
अपने दिल पर ही नहीं है मुझे क़ाबू बोलो ...
ये तसल्ली ये दिलासा ये सहारा नाटक ...
उलझी उलझी ज़ुल्फ़ के ख़म नाचते ...
मुझे था तुझ से कभी प्यार झूट बोला था ...
कुचला किए हैं कितने ही लश्कर ज़मीन को ...
कोई क़ीमत लगाए साए की ...
कोई मारे तो मार डाले मुझे ...
कहूँ किस से कि धुँदलाए हुए हैं ...
जब से नसीब मेरा ठिकाने पे आ गया ...
हुज़ूर खेल है या फिर डरामा-बाज़ी है ...
है नज़र में जो बाल शीशे का ...
ग़म के बादल अगर छटे हुए थे ...
एक ही मंज़र तो बेहतर था हमें ...
देख ले ख़ुद ही कोई लौट के जाते हुए हाथ ...
बात आगे बढ़ा तरीक़े से ...
'अदू दामन पसारे मिल रहे हैं ...
मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है ...