इन आँसुओं को टपकने दिया न था मैं ने ...
आरज़ूएँ न रहीं हसरत-ओ-अरमाँ न रहे ...
याद-ए-माज़ी 'अज़ाब है या-रब
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम ...
बहार आई ज़माना हुआ ख़राबाती ...
मोहब्बतों में बहुत रस भी है मिठास भी है ...
वक़्त कर दे न पाएमाल मुझे ...
उभर रही है किरन सुब्ह-ए-ज़ू-फ़िशाँ के लिए ...
ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं ...
जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है ...
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे ...
दहकते कुछ ख़याल हैं 'अजीब 'अजीब से ...
त'अज्जुब से कहने लगे बाबू साहब ...
शोख़ी ये लीडरों की ये मिल्लत की अबतरी ...
ख़िज़ाँ से जंग करूँ ये नहीं मुझे सौदा ...
इक तरफ़ तमकीन है और बे-क़रारी इक तरफ़ ...
बे-पर्दा कल जो आईं नज़र चंद बीबियाँ ...
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका