अल्लाह-जी ...
गई हो जब से ...
आकाश रहा छप्पर मेरा ...
मेरी आँखें ...
बहुत पहले जो नफ़रत जाग उठी थी ...
मैं कि बचपन में एक दिन घर से ...
शो-रूमों से ...
वो जीने की पहली ख़्वाहिश ...
ये ख़ौफ़ भी निकाल दूँ सर में नहीं रखूँ ...
सोचता हूँ कि मुझे तुझ से मोहब्बत क्यों है ...
सभी हैं झूठे तो सच मैं ही बोल कर देखूँ ...
रस्ता लम्बा हो तो पियादा मत करना ...
रात सर्दी ख़ौफ़ जंगल और मैं ...
मिलने वालो रिश्तों में क्यों आते हो ...
मेरी बुनियाद को ता'मीर से पहचाना जाए ...
मेरी आँखों में किर्चियाँ रख दे ...
कोई भी रस्म हो सर पर नहीं उठाते हम ...
किसी को अपना बना लो किसी के हो जाओ ...
किसी भी तरह नहीं तुम को भूलने का है ...
ख़ुद को इतना भी मत बचाया कर ...