अचानक मिल गईं रूहें हमारी कल ...
अचानक हो गईं नुक्ते की बातें ...
आप को ऐसे न खोना था हमें ...
क्या कोई दिन बचा है न बंदा हिसाब दे ...
ख़ुद को सोचा है कि कुछ तन्हा करूँ ...
कहो तुम ये ज़ेहनी अज़िय्यत नहीं है ...
आँख से जो नमी नहीं जाती ...
तेरे बदन के लम्स का मंज़र बिखर गया ...
सय्याद कह रहा है रिहाई न देंगे हम ...
सर तो नेज़े पे उन के उछाले गए ...
सब फ़ैसले ख़िलाफ़ हमारे गए तो क्या ...
मोम का ये जिस्म मेरा धूप की यलग़ार है ...
मेरी अंखों का सुकूँ दिल के उजाले मेरे ...
लिख के तहरीर मोहब्बत की मिटाई उस ने ...
जिस की ख़ातिर मिरी दीन-दारी गई ...
हिम्मत तमाम तुम से जुटाई नहीं गई ...
हर्फ़-हर्फ़ चमका कर लफ़्ज़-लफ़्ज़ महका कर ...
दिल की दीवार पे मेहराब बना कर रखता ...
रंग बुझने लगे हैं आँखों में ...
सफ़र में भीड़ बहुत है पता नहीं चलता ...