पहले तो ख़ाक-दान बनाने का दुख हुआ ...
नश्शा कुछ ऐसा था कि समझ में न आई बात ...
नए जहान का दर बाज़ करने वाली है ...
मुझ को वो भी बसा-ग़नीमत था ...
मुद्दतों बा'द शब-ए-माह उसे देखा था ...
क्यारी क्यारी ख़ाली है ...
कुछ नहीं तेरे मेरे में ...
कोई मौज़ू' हो तेरा हवाला अच्छा लगता है ...
कोई भी शक्ल हो या नाम कोई याद न था ...
किसी भी बात का जब ए'तिबार मुश्किल है ...
किस से बार-ए-ग़म उठा किस ने किसे रुस्वा रखा ...
ख़ुदा ने ख़ुश मुझे औक़ात से ज़ियादा किया ...
ख़ुदा ही आप न जब तक ज़मीं पे उतरेगा ...
ख़राबा-ए-बाम-ओ-दर बहुत याद आ रहा है ...
ख़मोश रात में कुछ यूँ तुझे सदा देंगे ...
ख़ाक ले जाएँ यहाँ से कि हवा ले जाएँ ...
कल रात मैं शिकस्त-ए-सितमगर से ख़ुश हुआ ...
कभी-कभार 'अजब वक़्त आन पड़ता है ...
कभी भुला के कभी उस को याद कर के मुझे ...
जिसे भी हों अदब-आदाब देख सकता है ...