ज़ब्त को सोच कर ख़र्च करता हूँ मैं ...
बात सुन कर मिरी वो हँसा ...
ख़ुदा जाने ...
तवज्जोह ...
ये मुझ पर तब खुला ...
हम कभी रास्ते में नहीं ...
किसी की इक झलक भर देखने के वास्ते ...
सलीक़ा शर्त है बस ...
बिला सबब बड़बड़ा रहे हो ...
कितने अच्छे हैं मेरे कॉलोनी वाले ...
आधा सिगरेट पी कर फेंक दिया मैं ने ...
मुस्कुराहट का पड़ाव ...
क़ब्र क्या ढूँडना ...
मिरे जिस्म के पैंतरों से परेशाँ थी वो ...
कोई दुपट्टा पहिए में आए तो मौत भी बन सकता है ...
चलो छुट्टी मिली आख़िर ...
घर के आगे भीड़ नहीं होने का मतलब ...
किसी झगड़े से बस इतने ज़रा से फ़ासले पर ...
मौत अमर कर सकती थी उस रिश्ते को ...
हाँ यही घर है जहाँ ...