सभी हिंदी शायरी

ज़ब्त का ख़र्च

ज़ब्त को सोच कर ख़र्च करता हूँ मैं ...

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वाक़'ई झूठ था क्या

बात सुन कर मिरी वो हँसा ...

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तमाशाई न मिल पाए

तवज्जोह ...

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शादी का दिन

ये मुझ पर तब खुला ...

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साँस लेने का सुख

हम कभी रास्ते में नहीं ...

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समझ से परे

किसी की इक झलक भर देखने के वास्ते ...

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सलीक़ा शर्त है बस

सलीक़ा शर्त है बस ...

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क़ब्रिस्तान के नल पर

बिला सबब बड़बड़ा रहे हो ...

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मौत की इमदाद

कितने अच्छे हैं मेरे कॉलोनी वाले ...

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माहौल बनाने वाले जुमले

आधा सिगरेट पी कर फेंक दिया मैं ने ...

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क्या जवाब दूँ

मुस्कुराहट का पड़ाव ...

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किसी के समझदार होने तक

क़ब्र क्या ढूँडना ...

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खिलौना मौत भी है

मिरे जिस्म के पैंतरों से परेशाँ थी वो ...

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जिस्म की तौहीन

कोई दुपट्टा पहिए में आए तो मौत भी बन सकता है ...

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जिस्म के साथ आख़िरी लम्हे

चलो छुट्टी मिली आख़िर ...

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घर के आगे भीड़ नहीं होने का मतलब

घर के आगे भीड़ नहीं होने का मतलब ...

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दुश्मनी का लुत्फ़

किसी झगड़े से बस इतने ज़रा से फ़ासले पर ...

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देर लगा दी

मौत अमर कर सकती थी उस रिश्ते को ...

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दरवाज़े पर बिस्तर

हाँ यही घर है जहाँ ...

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