लोग जो आगे से आगे बोलते हैं ...
लौट आए हैं जाने वाले ...
लगी जो देर मुझे आप को मनाने में ...
कुछ तो अहबाब ज़रा दिल के बड़े हैं मेरे ...
कुछ साग़र छलकाने तक महदूद रहा ...
कुछ भी मंज़िल से नहीं लाए हम ...
कोई ख़ुश था तो कोई रो रहा था ...
किसी से ख़फ़ा मैं हुआ ही नहीं ...
किस ने सोचा था कि इस हद तक भी जा सकता हूँ मैं ...
ख़ुदा से मशवरे के बा'द क्या हुआ ...
ख़ुदा ने तो सब्र आज़माया मिरा ...
ख़ुदा के इस क़दर नज़दीक जाना पड़ रहा है ...
ख़ुद को इतना दुनिया-दार नहीं कर सकते ...
ख़याल सा है कि तू सामने खड़ा था अभी ...
ख़त्म ख़ुद पर सफ़र किया हम ने ...
ख़मोशी में गुज़ारा कर रहा हूँ ...
कटेगी कैसे हमारी वहाँ पे जाए बग़ैर ...
कहता है कार-ए-'इश्क़ में मर जाना चाहिए ...
कहाँ हम में झगड़ा हुआ था कोई ...
कभी जो हम ज़रा बहुत सँभल गए ...