उस धोके ने तोड़ दिया है इतना मुझ को ...
तुझ से वाबस्ता शा'इरी के बग़ैर ...
थकन औरों पे हावी है मिरी ...
तिरी तरफ़ से तो हाँ मान कर ही चलना है ...
तिरे ग़म से उभरना चाहता हूँ ...
तभी तो भीड़ बे-शुमार है यहाँ ...
सुब्ह करेंगे हुश्यारी से ...
सिर्फ़ घुटन कम कर जाते हैं ...
शिकवा इक इल्ज़ाम हो शायद ...
शायद मुझ से जान छुड़ाया करता था ...
शक्ल बदली और अन्दर आ गया ...
सारा घर एक लय में रोता है ...
सामने अपने खड़े हो जाएँगे ...
समझ लो ख़ूब ये फ़तवा अभी जारी नहीं है ...
सफ़र ही काफ़ी है 'उम्रें गुज़ारने के लिए ...
सफ़र हालाँकि तेरे साथ अच्छा चल रहा है ...
सद्र-ए-आली-मक़ाम होने से ...
सब यार मिरे ख़ूब कमाने में लगे थे ...
रोज़ का इक मश्ग़ला कुछ देर का ...
रोना-धोना सिर्फ़ दिखावा होता है ...